हाइलाइट्स
चना साग का इतिहास 7 हजार वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है.
कब्ज दूर कर डाइजेशन को बेहतर करने में मदद करता है चना.
चना साग खाने से आंखों की रोशनी भी बेहतर होने में मदद मिलती है.
Swad Ka Safarnama: कुछ सब्जियां या फल ऐसे भी होते हैं कि उनका उपयोग तो भोजन के लिए होता ही है, साथ ही उनके फूल, पत्ती या अन्य चीजें भी खाने या अन्य काम में आती हैं. इन्हीं में चने का साग भी शामिल है. जब यह पैदा होता है तो इसके कच्चे पत्ते खाने के काम आते हैं, इसमें मसाले आदि डालकर बढ़िया साग बनाया जाता है. बाद में जब पत्ते बढ़ते हैं तो उनमें चना पैदा होता है. वह भी खाने के काम आता हे. चने के साग की विशेषता है कि यह शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करता है और पेट का पाचन सिस्टम स्मूद बनाए रखता है. हजारों वर्ष पुराना है चने के साग का इतिहास.
होलिका दहन से जुड़ा है चने का साग और बूट
भारत में चूंकि शाकाहारी लोगों की संख्या ज्यादा है तो प्रकृति ने उन्हें शाकाहार भोजन भी बहुतायत में उपलब्ध कराया है. इनमें सब्जियां फल तो शामिल हैं ही, साथ में साग-तरकारी भी मौजूद है. इन्हीं में से कई प्रकार के साग मौजूद हैं. इनमें चौलाई, सरसों, पालक तो है ही, चने का साग भी शामिल है. विशेष बात यह है कि अधिकतर साग सर्दी का ही भोजन हैं, लेकिन आधुनिक तकनीक ने अब कुछ को पूरे साल उपलब्ध करा दिया है, इनमें पालक तो जगजाहिर है ही.
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होलिका दहन पर चने के साग को भूनना भी शगुन माना जाता है. Image-canva
चने के साग की विशेषता यह है कि स्वाद में यह हलका सा खट्टापन लिए होता है जो किसी अन्य साग के स्वाद में नहीं होता. यह तब ही खाया जा सकता है, जब इसमें चने (बूट) नहीं लगते. जब साग में चने उगने लग जाते हैं तो फिर यह साग खाने लायक नहीं रहता. इस साग की विशेषता यह है कि होली के पर्व पर होलिका दहन में गेहूं की बालियों के साथ चने के साग से जुड़े हुए बूटों को भी भूनना शगुन माना जाता है.
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मध्य पूर्व में उगा और दुनिया में फैला
चने के साग का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. फूड हिस्टोरियन्स का मानना है कि इस साग का इतिहास 7 हजार वर्ष से अधिक पुराना है और इसका उत्पत्ति स्थल मध्य पूर्व है. भारतीय अमेरिकी वनस्पति विज्ञानी प्रो. सुषमा नैथानी ने भी अपनी रिसर्च में इसी क्षेत्र को चने के साग का उत्पत्ति का केंद्र माना है. वहां से यह दक्षिणी पूर्वी यूरोप पहुंचा और उसके बाद धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैलता चला गया. प्रो. नथानी ने साग और चने का एक उत्पत्ति केंद्र सेंट्रल एशियाटिक सेंटर भी माना है, जिसमें भारत, अफगानिस्तान आदि शामिल हैं. लेकिन यह कन्फर्म है कि इस क्षेत्र में इसकी खेती हजारों सालों से हो रही थी. लेकिन उसके प्रमाण मध्य पूर्व से बाद के हैं.
भारत में चने के साग का इतिहास 2000 ईसा पूर्व माना जाता है. 700-800 ईसा पूर्व लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ व ‘सुश्रुतसंहिता’ में चने को ‘चणक’ कहा गया है. कौटिल्य अर्थशास्त्र (लगभग 300 ईसा पूर्व) में भी चने का वर्णन आया है. आयुर्वेद से जुड़े निघंटु ग्रंथों में भी चने के साग का वर्णन किया गया है.
वात रोगों का शमन करने में मददगार है
चूंकि गुणों के मामले में चना ही बहुत लाभकारी और शरीर के लिए जानदार माना जाता है, तो स्पष्ट है कि इसका साग भी यही विशेषताएं लिए हुए होगा. इस साग की विशेषता है कि यह शरीर में इन्यूनिटी बढ़ाता है और पेट का पाचन सिस्टम स्मूद रखता है. भारतीय जड़ी-बूटियों, फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकिशन के अनुसार चने का साग कषाय, अम्लीय, रुचिजनक, कफ कम करने वाला, पित्तशामक, दांतों की सूजन कम करने में सहायक, कफ-वातशामक होता है, लेकिन यह देर से पचता है.

चना में फाइबर भरपूर होता है जो कब्ज से राहत दिलाता है. Image-canva
योगाचार्य व आहार विशेषज्ञ व योगाचार्य रमा गुप्ता के अनुसार चने का साग सर्दियों का भोजन है और इस दौरान बार-बार सर्दी-जुकाम और खांसी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कमजोर इम्यूनिटी के कारण ये रोग परेशानी पैदा करते हैं. ऐसे में चने का साग लाभकारी है. इनमें मौजूद एंटिऑक्सीडेंट्स और पोषक तत्व इम्यूनिटी बढ़ाते हैं जिससे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है. इस साग में फाइबर भरपूर होता है, जो कब्ज की परेशानी से राहत दिलाने में असरदार माना जाता है.
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ज्यादा सेवन पेट में मरोड़ पैदा कर देगा
रमा गुप्ता के कहना है कि यह साग प्रोटीन का अच्छा स्रोत है, जो कब्ज की समस्या को दूर करने में लाभकारी हैं. भोजन में चने का साग शामिल करने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए चने का साग लाभकारी माना जाता है क्योंकि इसमें मौजूद डाइटरी फाइबर और प्रोटीन पाचन शक्ति बढ़ाने, मेटाबॉलिज्म बूस्ट करने में सहयोग करते हैं. यह साग आंखों की रोशनी को भी ठीक रखता है. सामान्य तौर पर चने के साग का कोई साइड इफेक्ट नहीं है. अधिक मात्रा में सेवन मरने से यह पेट में मरोड़ा कर सकता है.
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FIRST PUBLISHED : February 26, 2023, 07:01 IST
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