Publish Date: | Tue, 28 Feb 2023 07:13 AM (IST)
भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। राजधानी में सोमवार को जलवायु परिवर्तन और वन सरंक्षण को लेकर कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसका विषय ‘नालेज शेयरिंग आन काप-27 एंड बियांड: इम्पोर्टेंस एंड की लर्निंग’ था। यहां पिछले वर्ष नवंबर में मिस्र में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन सीओपी-27 के मुख्य बिंदुओं पर बात की गई। इसके साथ ही वक्ताओं ने प्रजेंटेशन के जरिए जलवायु परिवर्तन और उसके परिणामों पर भी बातचीत की। इस दौरान वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट इंडिया (डब्ल्यूआरआई) और एप्को के बीच एक एमओयू साइन किया गया। इसके जरिए मध्यप्रदेश में अगले 5 साल तक जलवायु परिवर्तन और जंगलों के संरक्षण संबंधी काम किए जाने पर ध्यान दिया जाएगा।
इस कार्यशाला में एप्को के कार्यपालन संचालक मुजीबुर्रहमान खान ने डब्ल्यूआरआइ इंडिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि मैं आशा करता हूं कि एमओयू से राज्य में अगले पांच वर्ष में उपयोगी एवं सार्थक प्रयास किए जाएंगे। जिसके परिणामस्वरूप हम सस्टेनेबल और ग्रीन डेवलेपमेंट की ओर परस्पर ठोस कदम बढ़ाएंगे। वहीं एप्को, राज्य एवं जिला स्तर पर डब्ल्यूआरआई इंडिया और संबंधित विभागों को समस्त प्रकार की संस्थागत एवं तकनीकी सहायता देना जारी रखेगा। कार्यशाला में राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र के समन्वयक लोकेन्द्र ठक्कर ने कहा कि एप्को मप्र शासन की विशिष्ट संस्था है, जो राज्य शासन को पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर परामर्श देने के साथ शोध अध्ययन, योजना कार्य तथा प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास के कार्यों के लिए प्रतिबद्ध है।
इस कार्यशाला में भोपाल के प्रमुख अकादमिक संस्थानों और विषय विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। वक्ताओं ने प्रजेंटेशन के बीच यहां शामिल हुए लोगों से सवाल भी किए। कृषि, जल संसाधन, पर्यटन और ऊर्जा क्षेत्रों में बड़ी चुनौती ग्लोबल पालिटिकल स्ट्रेटेजी के हेड और कार्यशाला के मुख्य वक्ता हरजीत सिंह ने कार्यशाला में ‘लास एंड डेमेज फंड और जलवायु परिवर्तन में सुधार लाने के लिए भारत किसी भी क्षतिपूर्ति का इस्तेमाल कैसे कर सकता है’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मप्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव ज्यादा पड़ने की संभावना है। ये कृषि, जल संसाधन, पर्यटन और ऊर्जा क्षेत्रों में एक बड़ी चुनौती रहेगी। फिलहाल जो नीतियां हैं उनके साथ हमें तकनीकी और वित्तीय संसाधनों की जरूरत है। इसके अलावा स्थानीय स्तर के समाधानों को बढ़ाने और पर्यावरण के अनुसार नीतियां बनाना भी जरूरी है। जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानियों और क्षतियों को दूर करने के लिए हमें मानव क्षमता को बढ़ाना होगा।
Posted By: Ravindra Soni
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