Chaitra Navratri 2023: शाजापुर। चीलर नदी के तट पर मां राजराजेश्वरी का मंदिर है। नदी के चंद्राकार आकार वाले स्थान, करीब में श्मशान होने से मां के मंदिर की महत्ता और बढ़ जाती है। तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। स्कंद पुराण में इसे शक्तिपीठ बताया गया है। मान्यता है कि शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। वर्षों पहले मंदिर के विस्तार के दौरान की गई खोदाई में माता के चरण, चिमटा, त्रिशूल मिला, मां सती के साथ भोलेनाथ सहित शिव परिवार मूर्ति के रूप में मिले थे। मंदिर में 53 सालों से अखंड ज्योत जल रही है।
इतिहास
विश्व के 52 स्थानों पर शक्तिपीठ मंदिर स्थापित हैं। मान्यता है कि राजा दक्ष ने जब हवन किया तो उस समय मां सती व भोलेनाथ को नहीं बुलाया गया था। जब माता सती यज्ञ में गई तो उनके पिता राजा दक्ष ने भोलेनाथ का अपमान किया। पति का अपमान होने के कारण माता सती अग्निकुंड में कूद गईं। इसके पश्चात भोलेनाथ माता सती को गोद में लेकर घूमते रहे। इस दौरान माता सती के एक-एक अंग गिरते रहे। शाजापुर में मां का दाहिना चरण गिरा था, जो आज भी मंदिर के गर्भगृह में विद्यमान हैं।
रूप बदलती है मूर्ति
पुजारी पं. आशीष नागर ने बताया कि स्थापित मां की मूर्ति रूप बदलती है। पूर्व में यहां आरती के समय शेर भी आकर मां के दरबार में हाजिरी लगाता था। इसके कारण हवनकुंड के स्थान पर शेर की प्रतिमा स्थापित की गई है। मां के दरबार में साल भर भक्तों का तांता लगा रहा है, लेकिन नवरात्र के दौरान भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। मेले में सांस्कृितक कार्यक्रम भी होते हैं।
प्राचीन मां राजराजेश्वरी देवी मंदिर में नवरात्रि पर्व के दौरान 15 दिवसीय मेले का आयोजन होता है। मंदिर के विकास और विस्तारीकरण के लिए मास्टर प्लान भी तैयार किया गया है। – अरुण भीमावद मंदिर प्रबंधन समिति सदस्य
मां राजराजेश्वरी देवी मंदिर को स्कंद पुराण में शक्तिपीठ बताया गया है। माताजी की मूर्ति राजा दक्ष के समय की है। मंदिर का गर्भ गृह संवत 1060 राजा भोज के कार्यकाल निर्मित हुआ था। बाहर का सभा मंडम 1734 का है। – आशीष नागर, पुजारी
Posted By: Prashant Pandey
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