Kuno Palpur National Park: श्योपुर (नप्र)। एक तरफ गंभीर बीमारी और दूसरी तरफ नामीबिया में साथ रही हमउम्र दोस्त आशा चीता से अलग होना भी शायद साशा का भारत में यूं दुनिया से चले जाने की वजह बना। साशा नामीबिया में ही साढ़े पांच वर्षीय आशा की अच्छी दोस्त बन गई थी, यही कारण है दोनों को एक अन्य छोटी मादा चीता के साथ एक ही क्वारंटाइन बाड़े में रखा गया था।
बाद में पांच नम्बर बड़े बाड़े में भी दोनों साथ रहीं। यहां बीमार होने के बाद साशा को वापस क्वारंटाइन बाड़े में रखकर उपचार किया गया। वहीं आशा चीता को खुले जंगल में छोड़ा गया। अधिक उम्र होने के कारण आशा और साशा से ही भारत में प्रजनन कर अन्य चीतों की उत्पत्ति की बड़ी उम्मीदें थी।
मादा चीता साशा को शैशवकाल में 2017 अंतिम महिनों में नामीबिया के गोबाबीस गांव के एक खेत के पास किसानों ने पकड़ा था। उस समय वह काफी दुबली-पतली और कुपोषित थी। वहां नामीबिया में लारी मार्कर के निर्देशन में चलने वाली चीता कंजर्वेशन फंड (सीसीएफ) से जुड़े कार्यकर्ता उसे लेकर आए उसके स्वास्थ्य की देखरेख की। जनवरी 2018 को सीसीएफ स्टाफ उसे चीता केंद्र के उद्यान में लेकर आया।
फरवरी 2019 में नामीबिया के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित कामंजब गांव के पास एक खेत से सीसीएफ के स्टाफ ने एक और मादा चीता को पकड़ा था, जिसे भारत में आशा नाम दिया गया है। यह दोनों हम उम्र होने के कारण नामीबिाय में ही अच्छी दोस्त बन गई थी।
अक्सर दोनों आमतौर पर बाड़े में एक ही साथ पाई जाती थी, इसीलिए पांच वर्ष की आयु में भारत में लाए जाने के बाद इन्हें एक ही क्वारंटाइन बाड़े में रखा गया। यहां काफी दिनों तक वे साथ रही। क्वारंटाइन बाड़े के बाद जब बड़े बा़डे में छोड़ा गया तब भी इन्हें साथ ही रखा गया। 22 जनवरी को साशा की तबीयत खराब होने पर उसे क्वारंटाइन बाड़े में वापस लाया गया था, वहीं 11 मार्च को आशा चीता को खुले जंगल में छोड़ दिया गया।
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