MP Tourist Place: मनोज तिवारी, भोपाल। मध्य प्रदेश की धरती पर 75 साल बाद बसाए गए चीते आर्थिक रूप से अति पिछड़े श्योपुर व 32 साल बाद माधव नेशनल पार्क को आबाद करने वाले बाघ शिवपुरी को आर्थिक संबल देंगे। भौगोलिक रूप से एक-दूसरे से सटे श्योपुर और शिवपुरी जिले में यह वन्यजीव रोजगार की उम्मीद लेकर आए हैं। भारत में चीते सिर्फ मध्य प्रदेश में हैं। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि देश के हर कोने से पर्यटक कूनो नेशनल पार्क घूमने आएंगे। इनमें से जो भी बाघ देखने की इच्छा रखेंगे वे शिवपुरी पहुंचेंगे, क्योंकि माधव पार्क सबसे नजदीक है। आगरा या ग्वालियर के रास्ते इन पार्कों तक आने वाले पर्यटक विश्व धरोहर खजुराहो के मंदिर, उज्जैन में श्रीमहाकाल महालोक के दर्शन करते हुए इंदौर से वापसी के लिए उड़ान भर सकेंगे।
ईको सिस्टम में सबसे ऊपर तेंदुआ
श्योपुर का जंगल घना और जैव विविधता से परिपूर्ण है, यहां जंगली सुअर, हिरण, सांभर, नीलगाय, चिंकारा, चीतल बड़ी संख्या में हैं। रातापानी अभयारण्य के पूर्व संचालक आरके दीक्षित कहते हैं कि ईको सिस्टम (पारिस्थितिकीय तंत्र) की दृष्टि से देखें तो यहां वन्यप्राणियों की कड़ी में सबसे ऊपर तेंदुआ है। इस जंगल में बाघ नहीं हैं, पर सौ से अधिक तेंदुए हैं, जो लगातार शाकाहारी वन्यप्राणियों का शिकार करते हैं, जिससे उनकी संख्या नियंत्रित रहती है, ऐसा न हो, तो जंगल से सटकर खेती करने वाले किसानों के लिए समस्या खड़ी हो जाए। शाकाहारी वन्यप्राणी उनकी फसल बर्बाद कर दें। बता दें कि यहां पहले एशियाटिक लायन (शेर) बसाए जाऐ थे। इसी के लिए कूनो नेशनल पार्क को तैयार किया गया था, पर अब चीते आ गए हैं।
वर्तमान पीढ़ी के लिए चीता नया जीव
पार्क में मौजूद 20 में से चार चीतों को खुले जंगल में छोड़ दिया गया है। दीक्षित बताते हैं कि वर्तमान पीढ़ी के लिए चीता नया जीव है। यह पीढ़ी उनका व्यवहार नहीं जानती है। ऐसे में चीतों का डर रहेगा और जंगल से लकड़ी चोरी सहित अन्य घटनाएं भी कम होंगी, तो जैव विविधता का संरक्षण होगा। उधर, माधव नेशनल पार्क शिवपुरी में वर्ष 1991 तक बाघ थे, इसके बाद यह पार्क बाघ विहीन हो गया। जिसे फिर से आबाद किया है। अभी सतपुड़ा-बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से एक बाघ और एक बाघिन पार्क में छोड़े गए हैं। उम्मीद की जा रही है कि पन्ना टाइगर रिजर्व की तरह बाघ यहां भी कुनबा बढ़ाएंगे।
ज्ञात हो कि पन्ना पार्क भी वर्ष 2007 में बाघ विहीन हो गया था, यहां वर्ष 2008-09 में कान्हा, बांधवगढ़ से बाघ ले जाकर बसाए गए, जो अब बढ़कर 60 से अधिक हो गए हैं। वन विहार नेशनल पार्क के पूर्व सहायक संचालक डा सुदेश बाघमारे कहते हैं कि ईको सिस्टम बनाए रखने के लिए शेर, बाघ, तेंदुआ, चीता जरूरी हैं। यह इस कड़ी का शीर्ष हिस्सा है। यदि यह नहीं रहेगा, तो उस क्षेत्र में फूड चैन गड़बड़ा जाएगी।
ऐसे प्रयोग वाला पहला राज्य
मप्र पहला राज्य है, जिसने पन्ना पार्क में बाघ आबादी समाप्त होने के बाद उसे सिर्फ दो साल में आबाद कर दिया और यह प्रयोग इतना सफल हुआ कि अब पार्क में 60 से अधिक बाघ हैं। शिवपुरी में भी इसी प्रयोग को दोहराया जा रहा है। इससे भी बड़ा प्रयास चीतों को लेकर हुआ है। भारत भूमि से 75 साल पहले विलुप्त हुए चीतों को दक्षिण अफ्रीका से लाकर बसा दिया गया। छह माह पहले लाए गए आठों चीते पूरी तरह से स्वस्थ हैं। चार को खुले जंगल में भी छोड़ दिया है।
ऐसे मिलेगा रोजगार
आर्थिक दृष्टि से दोनों ही जिले पिछड़े हैं। यहां रोजगार के साधन नहीं हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि आगरा घूमने आने वाले पर्यटक चीता देखने जरूर आएंगे। यहां से वे बाघ देखने शिवपुरी भी जाएंगे। इससे क्षेत्र में पर्यटन बढ़ेगा। होटल, रिसार्ट, टैक्सी सहित अन्य व्यापार में स्थानीय लोगों को लाभ मिलेगा।
Posted By: Prashant Pandey
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