Shivraj Cabinet : भोपाल (राज्य ब्यूरो)। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मध्य प्रदेश दौरे के बाद अब सभी की नजर शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार पर टिक गई हैं। विधानसभा का बजट सत्र भी खत्म हो चुका है। अब विधानसभा चुनाव को बमुश्किल सात महीने का समय बचा है। ऐसे में लंबे समय से टलते आ रहे मंत्रिमंडल विस्तार की प्रबल संभावनाएं हैं।
मंत्रिमंडल में फ़िलहाल भौगोलिक और जातिगत समीकरण भी बिगड़े हुए हैं। कांग्रेस से आए नेताओं के कारण ग्वालियर-चंबल अंचल का सरकार में बोलबाला है। पार्टी भी चाहती है कि संतुलन बनाया जाए। इधर मंत्री पद पाने वाले नेताओं को भी अब इंतजार भारी पड़ रहा है। ऐसे में उम्मीद है कि आने वाले माह में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कोई फ़ैसला हो जाए।
पहले माना जा रहा था कि मोदी मंत्रिमंडल विस्तार के बाद शिवराज सिंह चौहान अपनी टीम को नया रूप दे सकते हैं। दरअसल, पिछले कई दिनों से यह उम्मीद की जा रही थी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की नई टीम के गठन के बाद मध्य प्रदेश का प्रस्तावित कैबिनेट फेरबदल हो सकता है, लेकिन अब तक दोनों मामले लंबित होने के कारण मप्र के मामले में भी स्थिति असमंजस की बनी हुई है।
मप्र में शिवराज कैबिनेट में फिलहाल चार मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। चुनावी साल होने के कारण सियासी क्षेत्र में भी उम्मीद थी कि सरकार सत्ता विरोधी रुझान को कम करने के लिए मंत्रिमंडल में नए चेहरों को लाया जा सकता है। फरवरी में सरकार की विकास यात्राएं फिर विधानसभा का बजट सत्र और इसके बाद केंद्रीय नेताओं के दौरे के कारण मंत्रिमंडल विस्तार टल रहा था।
कैबिनेट में ठीक प्रतिनिधित्व न मिल पाने के कारण विंध्य के विधायक बतौर विकल्प निगम-मंडल में कैबिनेट मंत्री के दर्जे की मांग लंबे समय से कर रहे हैं, लेकिन वह पूरी नहीं हुई। इसके विपरीत ग्वालियर चंबल में मंत्रियों की भारी भरकम संख्या ने असंतुलन की स्थिति निर्मित कर दी है।
इधर, विधायकों की संख्या देखी जाए तो विंध्य क्षेत्र के 30 विधायकों में भाजपा के 24 हैं, लेकिन मंत्री पद मिला सिर्फ राम खिलावन पटेल और मीना सिंह को। दरअसल विधायकों का मंत्री, निगम- मंडल आदि के लिए अनुपात का गणित ये है कि भाजपा के कुल 127 विधायकों में 24 विंध्य क्षेत्र से हैं। यानी 20 प्रतिशत विधायक इसी क्षेत्र ने दिया है, लेकिन 35 सदस्यीय कैबिनेट में भागीदारी सिर्फ दो मंत्रियों की है, जबकि 20 प्रतिशत के हिसाब से सात मंत्री होने चाहिए थे।
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