जयपुर19 मिनट पहलेलेखक: समीर शर्मा
खालिस्तान…। पंजाब में एक बार फिर ये नाम चर्चा में है। खालिस्तान से जुड़ी एक कहानी राजस्थान ने भी देखी और झेली। घटना, जिसने राजस्थान ही नहीं, पूरे देश को हिला दिया था।
फरवरी, 1995 में इंदिरा गांधी के करीबियों में गिने जाने वाले केंद्रीय मंत्री और राजस्थान के दिग्गज नेता रामनिवास मिर्धा के बेटे राजेंद्र मिर्धा को खालिस्तान समर्थकों ने किडनैप कर लिया था।
जयपुर में आतंकियों और पुलिस की मुठभेड़ हुई और एक खालिस्तान समर्थक मारा गया। राजेंद्र मिर्धा को सुरक्षित छुड़ाने में सबसे बड़ी भूमिका थी एक दूधवाले हनुमान सहाय शर्मा की, जो हनुमान बागड़ा के नाम से भी जाने जाते हैं।
हनुमान सहाय ने कितना बड़ा जोखिम उठाया, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 24 साल तक उनको पुलिस प्रोटक्शन दिया गया।
आज इस घटना को 28 साल हो चुके हैं। केंद्रीय खुफिया एजेंसियां बार-बार पंजाब सरकार को अलर्ट भी जारी कर चेता रही हैं कि कोई बड़ी घटना हो सकती है।
वर्तमान माहौल में जब पंजाब की खालिस्तान की आवाजें फिर से सिर उठा रही हैं, भास्कर ने दूधवाले हनुमान सहाय को ढूंढा। साथ ही मिर्धा परिवार से भी संपर्क किया।
हनुमान सहाय तो इतने डरे हुए थे कि 1995 की घटना का जिक्र करते ही बोले…मैं बात ही नहीं करना चाहता। खैर, तीन-चार दिन के लगातार प्रयास के बाद वह भास्कर से मिलने को राजी हुए।
हनुमान सहाय बोले- 28 साल बाद भी जिंदगी नॉर्मल नहीं हुई। 2 महीने पहले ही लुधियाना से धमकी मिली। इसी तरह मिर्धा परिवार भी आज तक उस घटना को भूल नहीं पाया है।
दोनों ने बताया कि किस तरह एक घटना ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
डेयरी चलाने वाले हनुमान सहाय शर्मा, जिनकी हिम्मत और समझदारी की वजह से खालिस्तान समर्थकों का खतरनाक मिशन राजस्थान में फेल हो गया।
सबसे पहले पढ़िए, 28 साल पहले आखिर हुआ क्या था…
17 फरवरी, 1995 : मंत्री के बेटे की किडनैपिंग
- रामनिवास मिर्धा के बड़े बेटे राजेंद्र जयपुर के सी-स्कीम स्थित घर से मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। मौका पाते ही सफेद मारुति कार में आए हथियारों से लैस 3 आतंकियों ने उन्हें उठा लिया। मकसद था- राजेंद्र मिर्धा के बदले खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट के चीफ देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर को जेल से बाहर निकलवाना।
- राजेंद्र मिर्धा को आरोपी जयपुर के मालवीय नगर के पीछे मॉडल टाउन में बने एक मकान बी-117 में ले गए और वहां बंधक बना लिया। अपहरण के एक से डेढ़ घंटे बाद राजेंद्र की पत्नी उदयरानी मिर्धा को फोन कर आतंकियों ने कहा- राजेंद्र उनके कब्जे में है। उन्होंने राजेंद्र मिर्धा को छोड़ने के बदले जनवरी, 1995 में पकड़े गए खालिस्तान समर्थक भुल्लर को छोड़ने की मांग की।
- उदयरानी ने अपने देवर और राजस्थान सरकार में मंत्री रहे हरेंद्र मिर्धा को अपहरण के बारे में जानकारी दी। ये सूचना मिलते ही केंद्र और राज्य सरकारें सक्रिय हो गईं। आतंकियों में तीन आदमी और एक महिला शामिल थी। महिला के साथ उसका छोटा बच्चा भी था।
- एक दूधवाले हनुमान सहाय शर्मा को इसका पता चल गया। उसने पुलिस को सूचना दी। दूधवाले की सूचना पर पुलिस ने 9 दिन बाद 25 फरवरी, 1995 को उस मकान में दबिश दी। आतंकियों से सीधा मुकाबला किया। पुलिस की गोली से एक खालिस्तान समर्थक नवनीत सिंह कादियां मारा गया। दयासिंह लाहोरिया व उसकी पत्नी सुमन सूद और हरनेक सिंह फरार हो गए। राजेंद्र मिर्धा को सुरक्षित छुड़ा लिया गया।
- घटना के दिन ही पुलिस ने वैशाली नगर स्थित बी ब्लॉक के मकान नम्बर-83 पर छापा मारा, हरनेक सिंह वहां सुरेन्द्र वर्मा के नाम से जिम चलाता था। उसके मकान से विस्फोटक मिला। दयासिंह लोहारिया और उसकी पत्नी सुमन अमरीका भाग गए और वहां से अवैध रूप से कनाडा भागने की कोशिश कर रहे थे तब अमरीकी पुलिस ने मिनोसोटा हवाई अड्डे पर 3 अगस्त 1995 को दबोच लिया। वहीं, पंजाब पुलिस ने हरनेक सिंह को 2004 में गिरफ्तार किया।

खालिस्तान समर्थक देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर को जनवरी 1995 में गिरफ्तार किया गया था। उसे छुड़ाने के लिए उसके साथियों ने केंद्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा के बेटे का अपहरण किया था।
अब दूधवाले की जुबानी पढ़िए…कैसे लगा आतंकियों का सुराग
‘उस समय मेरी उम्र करीब 35 साल की रही होगी। मालवीय नगर और उसके बाहर के क्षेत्र में आज की तरह बसावट नहीं थी। यूं मान लीजिए कि वहां लोगों के बसने की शुरुआत थी। बस्ती बहुत ही कम थी। मॉडल टाउन के आस-पास के क्षेत्र की बात है। मेरा दूध सप्लाई का काम था। मेरे पास एक बिहारी लड़का रहता था, जो मुझे अपने पिता और मेरी पत्नी को मां ही समझता था। वह मुझे पापा-पापा ही बोलता था। थोड़ा मंद बुद्धि था, वो दूध सप्लाई के काम में मेरा हाथ बंटाता था।’
‘एक दिन वह मेरे पास डरा-सहमा सा आया। बोला – पापा! मैं उस घर में दूध देने नहीं जाऊंगा। उनके पास बड़ी-बड़ी बंदूकें हैं। मुझे उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ, तो मैंने उससे कहा-ठीक से बता, क्या बात है? लड़के ने बताया कि दूध एक महिला ने लिया था, उसके यहां छोटा बच्चा भी था। दूध देने के बाद जब पैसे लेने वो अंदर गई थे, तो मैं पीछे-पीछे घर के अंदर चला गया। वहां आदमियों के हाथ में बंदूक थी। मैं बिना पैसे लिए जैसे-तैसे तुरंत वहां से निकल आया।’
अंदर कमरे बंद व्यक्ति ने कहा कि मैं राजेंद्र मिर्धा हूं, मेरी मदद करो
‘मैंने पूछा- कौन सा घर है, मुझे बता। वो मुझे अपने साथ ले गया ओर एक घर दिखाया। वो घर मेरी डेयरी के पीछे थोड़ी ही दूरी पर था। वहां खाली प्लॉट में बस एक छोटा कमरा बना हुआ था। बाहर कोई हलचल नहीं थीं। मैंने सोचा अगले दिन मैं दूध देने जाऊंगा और देखूंगा कि क्या माजरा है? इसके बाद मैं उस लड़के के साथ लौट आया।’
‘अगले दिन मैंने उस लड़के को मना कर दिया और खुद दूध देने गया। उस घर से महिला निकली और उसने दूध लिया। उत्सुकता के कारण मैं उसके पीछे-पीछे भीतर चला गया।
मैंने देखा कमरे में एक आदमी को बांध रखा है। उस आदमी ने जैसे ही मुझे देखा तो वह धीरे से बोला मैं राजेंद्र मिर्धा हूं, मेरी मदद करो, ये खालिस्तान समर्थक हैं पंजाब के।’
‘प्रभावशाली राजनीतिक परिवार होने के कारण मिर्धा परिवार को जानता था और किडनैपिंग की खबरों के कारण हर तरफ चर्चा भी चल रही थी। मैंने राजेंद्र मिर्धा का नाम सुना हुआ था, लेकिन कभी देखा नहीं था। मैं नाम सुनते ही डर गया। नजदीक रखे हथियारों पर मेरी नजर पड़ी और उस समय कमरे में मौजूद एक खालिस्तान समर्थक माला फेर रहा था। मौका पाते ही मैं वहां से निकल गया।’

राजेंद्र मिर्धा का साल 2009 में हार्ट अटैक से निधन हो गया।
पुलिस समझी कि मैं मजाक कर रहा हूं, कोई मानने को तैयार नहीं था
‘मैं वहां से निकलकर पहले सीधे गांधी नगर थाने गया। पहुंचते ही थानेदार को बताया कि मालवीय नगर के एक मकान में कुछ बदमाश हैं और जिसे पकड़ रखा है, उसने अपना नाम राजेंद्र मिर्धा बताया है। थानेदार मुझ पर हंसने लगा। मजाक में बोला, हम पुलिसवाले राजस्थान छान रहे हैं और तुझे मिल गए।’
‘मैं समझ गया कि ये मेरी बातों को लेकर कतई गम्भीर नहीं हैं। फिर मैं मालवीय नगर थाने गया, वहां पुलिस को पूरी घटना बताया। मालवीय नगर थाने में भी किसी पुलिसवाले को मुझपर विश्वास नहीं था। मैंने कहा- मेरे साथ उस घर तक जाकर देख लीजिए, फिर भी वो लोग नहीं माने।’
…आखिर में सीएम हाउस जाकर मुख्यमंत्री को बताई पूरी बात
‘जब किसी ने मेरी बात नहीं सुनी तो आखिर में मैं सिविल लाइंस में मुख्यमंत्री निवास चला गया। तब भैरोंसिंह शेखावतजी मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री निवास में घुसने से पहले रास्ते में मैंने देखा कि पुलिस मेरा पीछा कर रही है, लेकिन मैं जैसे-तैसे मुख्यमंत्री निवास पहुंच गया।’
‘वहां अधिकारियों को बताया, तो उन्होंने गंभीरता से मेरी बात सुनी और मुख्यमंत्रीजी को बताया। मुख्यमंत्रीजी ने डीजीपी सहित सभी बड़े पुलिस अधिकारियों को तत्काल बुला लिया। उन अधिकारियों से मेरी ओर इशारा करते हुए कहा कि इसकी सुनो। मैंने मेरे लड़के वाली घटना सुनाई, फिर बताया कि कमरे में बंद व्यक्ति ने अपना नाम राजेंद्र मिर्धा बताया है। जो भी मैंने देखा था, सब बता दिया। यह भी बताया कि मेरे लड़के ने भी बंदूकधारियों को देखा है।’

खालिस्तान का साथी हरनेक सिंह। घटना के बाद हरनेक सिंह अपने दो साथियों के साथ फरार हो गया था।
24 साल तक पुलिस प्रोटक्शन मिला
‘मेरी निशानदेही पर पुलिस ने पूरा ऑपरेशन चलाया। मालवीय नगर में उस घर की घेराबंदी की। आतंकियों और पुलिस के बीच फायरिंग हुई। एक खालिस्तान समर्थक पुलिस की गोली से मारा गया और राजेंद्र मिर्धा को सुरक्षित छुड़ा लिया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत और रामनिवास मिर्धा सहित उनके पूरे परिवार से मैं मिला। पूरे परिवार ने मुझे धन्यवाद दिया।’
‘इसके इनाम में मुझे 0.07 हेक्टेयर जमीन देने की घोषणा की गई। राजेंद्र मिर्धा को छुड़ाने के बाद सरकार ने यह कह कर मेरी डेयरी बंद करा दी और मुझे दूसरी जगह जाने को कहा कि मेरी जान को खतरा है। सरकार के कहने पर ही पुलिस ने मुझे मालवीय नगर के मॉडल टाउन इलाके से हटाकर मेरे गांव में मेरे घर पर गार्ड लगा दिए गए थे।’
‘24 साल तक मुझे पुलिस प्रोटक्शन दिया। पहले मेरे घर के बाहर आधा दर्जन से अधिक पुलिस वाले हमेशा तैनात रहते थे। इसके बाद उनकी संख्या दो कर दी गई। दूध सप्लाई के समय भी वे मेरे साथ रहते थे। कोर्ट में जब आतंकियों के खिलाफ आदेश आया, उसके बाद पुलिस सुरक्षा हटा ली गई।’

सरकार ने हनुमान सहाय को इनाम में जमीन देने को कहा था। राज्य सरकार का आर्डर, जिसमें जेडीए को जमीन देने को कहा गया, लेकिन आज तक उन्हें जमीन नहीं मिली है।
आज तक नहीं मिली इनाम की जमीन
‘24 साल बाद भी मुझे इनाम की जमीन नहीं मिली है। मैंने इनाम में मिली जमीन की मांग की तो सरकार ने 24 अगस्त 2017 को जयपुर विकास प्राधिकरण को ये जमीन 1500 रुपए प्रति वर्ग गज या डीएलसी की 25 फीसदी, जो भी राशि अधिक हो उसे लेकर मेरे नाम पट्टा जारी करने के आदेश भी दे दिए। मैं जेडीए में धक्के खा रहा हूं, लेकिन जमीन अब तक नहीं मिली है, कोई सुनवाई भी नहीं हो रही।’
आज भी डर के साये में, 2 महीने पहले मिली धमकी
‘मुझे खालिस्तान लिबरेशन फोर्स ने दो महीने पहले ही धमकी दी है। लुधियाना की डाक है, रजिस्ट्री से पत्र आया हुआ है। मैंने दूध सप्लाई का काम भी बंद कर दिया। डर के कारण रहने की जगह भी बदल ली। मेरी एक जमीन का मामला चल रहा है, शायद उसी मामले के चलते खालिस्तानियों को मेरे बारे में पता चल गया।’
‘धमकी में कहा है- तेरी वजह से हमारा कमांडाे मारा गया है और तुझे इनाम की जमीन चाहिए। मैंने धमकी के बारे में संबंधित अधिकारियों को लेटर के जरिए शिकायतें कीं। अधिकारी बोल रहे हैं कि ऐसे ही कोई धमकी दे रहा है। थाने में भी शिकायत की। वहां कहते हैं कि कुछ नहीं होगा, हम बैठे हैं। क्षेत्र में पुलिस गश्त भी बढ़ा दी है। मैं अकेला रहता हूं। छिपते हुए समय निकाल रहा हूं। खतरा न हो, इस कारण कभी इधर-कभी उधर फिरता हूं।’
अब पढ़िए, राजेंद्र मिर्धा के भतीजे और हरेंद्र मिर्धा के बेटे राघुवेंद्र मिर्धा से भास्कर की बातचीत…
- भास्कर : पंजाब में खालिस्तान को लेकर फिर आवाजें उठ रही हैं, आपके परिवार ने उनका आतंक नजदीक से देखा है?
- राघुवेंद्र मिर्धा : हां, ताऊजी(राजेंद्र मिर्धा) के अपहरण के समय हम छोटे थे, लेकिन मुझे जो याद है वो मैं बताता हूं। ताऊजी के अपहरण के समय मैं अपने दादाजी केंद्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा के साथ दिल्ली में रहता था। वो बेहद दुखद घटना थी। मेरे दादाजी सहित पूरा परिवार बहुत चिंतित था। वो कंडीशन कम्फर्टेबल नहीं कही जा सकती। वैसे भी ऐसी कंडीशन में कोई कम्फर्टेबल रह भी कैसे सकता है।
- भास्कर : परिवार बहुत तनाव से गुजरा होगा?
- राघुवेंद्र मिर्धा : किडनैपिंग के दौरान तनाव तो था, लेकिन पर्सनली फैमिली के ऊपर डिसीजन मेकिंग का कोई प्रेशर नहीं था, क्योंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपने स्तर पर सभी जरूरी डिसीजन ले रहे थे। भैरोंसिंह शेखावतजी मुख्यमंत्री थे। कैलाश मेघवाल गृह मंत्री थे। मेरे नाना परसराम मदेरणा नेता प्रतिपक्ष थे। जहां तक मुझे याद है, उस समय केंद्र में राजेश पायलट मिनिस्टर ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी थे।

राजेंद्र मिर्धा के भतीजे और हरेंद्र मिर्धा के बेटे राघुवेंद्र मिर्धा जो उस वक्त बहुत छोटे थे, जब उनके ताऊजी को खालिस्तान समर्थकों ने किडनैप कर लिया था।
- भास्कर : ताऊजी को कोई नुकसान न पहुंचा दें, इस बात का डर तो रहा होगा…
- राघुवेंद्र मिर्धा : उस समय ताऊजी बीमार थे, ब्रेम हेमरेज हो गया था, जिसका लंबा इलाज चला था, सर्जरी भी हुई थी। जब इन चीजों से उबरे तो किडनैपिंग हो गई। ज्यादा चिंता थी कि उनको मेडिकली कोई प्रॉब्लम न आ जाए।
- भास्कर : जब आपके ताऊजी को आतंकियों से छुड़वा लिया गया, तब क्या वे सदमे में थे या नॉर्मल?
- राघुवेंद्र मिर्धा : जब उन्हें सुरक्षित छुड़ा लिया गया, तो सभी बहुत रिलीफ महसूस कर रहे थे। इस बात की भी बहुत ज्यादा राहत थी कि ताऊजी कोई कोई नुकसान नहीं हुआ था। उन्हें छुड़ाने के बाद सब ठीक था और उसके बाद ऐसी कोई परेशानी नहीं आई।
- भास्कर : परिवार में अब भी क्या किसी तरह का डर है?
- राघुवेंद्र मिर्धा : घटना तो हमारे साथ घट ही चुकी है। फिलहाल पंजाब में जो सुनने में आ रहा है, वो कोई अच्छी खबरें तो नहीं कही जा सकती हैं। लॉ एंड ऑर्डर सिचुएशन तो है ही। उम्मीद करता हूं कि बुरी घटनाओं से राजस्थान दूर रहे। और क्या कह सकते हैं।
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