Sunday, March 26, 2023
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158 शहीदों के नाम न स्कूल, 81 को नौकरी नहीं:क्योंकि सरकार के पास प्लान ही नहीं, मंत्री बोले: ये शर्म की बात

जयपुरएक घंटा पहलेलेखक: मनीष व्यास

पांच दिन पहले सैनिक कल्याण राज्यमंत्री राजेंद्र गुढ़ा में प्रदेश के कलेक्टर्स और रेवेन्यू ऑफिसर पर आरोप लगाया था कि– वे शहीदों के परिजनों को कॉपरेट नहीं करते। वे उन्हें चक्कर कटवाते हैं।

कारण था– शहीद के परिजनों को जो सुविधाएं या सरकारी नौकरी मिलनी थीं, वो अब तक पेंडिंग हैं।

राज्यसभा सांसद भी धरने पर बैठे

राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल पिछले 6 दिनों से जयपुर स्थित शहीद स्मारक पर वीरांगनाओं के साथ धरने पर बैठे हैं। शनिवार को वो अचानक धरना स्थल से उठकर वीरांगनाओं को लेकर राजभवन में राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन देने पहुंचे। यहां ज्ञापन सौंपने के बाद वीरांगनाये मुख्यमंत्री से मिलने का कहकर सीएम आवास की और जाने लगी, जिन्हें पुलिस ने रास्ते में ही रोक दिया। इस बीच पुलिस के साथ धक्का-मुक्की के दौरान शहीद सैनिक रोहिताश लांबा की वीरांगना मंजू जाट घायल हो गईं, जिन्हें फ़ौरन SMS हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया।

सांसद किरोड़ी लाल SMS हॉस्पिटल में भर्ती शहीद सैनिक रोहिताश लांबा की वीरांगना मंजू जाट से मिलने पहुंचे।

राजयसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने आरोप लगाया है कि वो तीनों वीरांगनाओं के साथ राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन देने राजभवन गए थे। ज्ञापन सौंपने के बाद वीरांगनाएं मुख्यमंत्री जी से मिलने के लिए मुख्यमंत्री आवास की ओर पहुंची तो पुलिस ने उनके साथ अभद्रता व मारपीट की। इसमें पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए रोहिताश्व लांबा की पत्नी वीरांगना मंजू जाट घायल हो गईं। उन्हें एसएमएस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। क्या वीरांगनाओं का प्रदेश के मुखिया से मिलने के लिए उनके सरकारी आवास की ओर जाना गुनाह है, जो पुलिस ने उनके साथ अभद्रता व मारपीट की? ‘

राज्य मंत्री गुढ़ा के बयान और किरोड़ी के प्रदर्शन के बाद जब दैनिक भास्कर ने इस मामले की पड़ताल की तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। भास्कर की इन्वेस्टिगेशन में सामने आया कि राजस्थान के 81 शहीदों के परिजनों को सालों से नौकरी नहीं मिली है।

देश की रक्षा के लिए प्राण देने वाले शहीदों के परिजन अब सरकारी सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं।अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए रोजाना सरकारी ऑफिस के चक्कर काट रहे है। इनमें 1962 में भारत-पाक और 1965 में हुए भारत-चीन युद्ध के शहीदों के परिजन भी हैं। इनके आवेदन 2 साल से ज्यादा समय से पेंडिंग हैं।

शहीदों के नाम स्कूल भी नहीं हो पाया

158 स्कूल और 25 चिकित्सा संस्थान आज भी शहीद के नाम से नहीं हो पाए। वहीं, पिछले 3 साल में शहीद हुए 11 जवानों के परिजन एक मुश्त 45 लाख की नकद सहायता और पोस्ट ऑफिस मंथली इनकम से वंचित है। इतना ही नहीं शहीदों के परिजन नल-बिजली कनेक्शन और रोडवेज में पास के लिए भी भटक रहे हैं।

शिकायत के लिए सिंगल विंडो नहीं, सरकार के पास प्लान भी नहीं

इस मामले की जानकारी जुटाई तो सामने आया कि सरकारी योजनाओं की मॉनिटरिंग के लिए सिंगल क्लिक विंडो सिस्टम है। लेकिन, शहीदों के परिजनों को सरकारी योजनाएं पाने के लिए कोई ऑनलाइन आवेदन का सिस्टम और सिंगल क्लिक विंडो का ऑप्शन नहीं है। हाल ही में सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि शहीदों के परिजनों को सरकारी सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए कोई ऑनलाइन सिस्टम नहीं है और न ही सरकार के पास ऐसा कोई प्लान या व्यवस्था है।

मंत्री बोले– सरकार के लिए शर्मा की बात

सैनिक कल्याण राज्य मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने भी विधानसभा में माना कि कई कलेक्टर और राजस्व विभाग के अफसर शहीदों के परिजनों का बिल्कुल सहयोग नहीं करते है। इससे एक दिन पहले ही उन्होंने जयपुर में चल रहे पुलवामा शहीदों के धरने में पहुंचकर कहा था कि ‘ ये सरकार के लिए शर्म की बात है।’ उन्होंने शहीदों के परिजनों को हो रही दिक्कतों के मसले को कैबिनेट मीटिंग में रखने की बात भी कही थी।

इन तीन केस से समझें, कैसे अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं परिजन

1971 के भारत पाक युद्ध में शहीद हुए थे। बेटे लोकेन्द्र सिंह शेखावत ने बताया कि अनुकंपा नौकरी के लिए कनिष्ठ सहायक के लिए आवेदन कर रखा है। फिलहाल नवम्बर 2021 से फाइल झुंझुनूं कलेक्टर के पास अटकी हुई है। यहां हर दिन अलग-अलग डॉक्युमेंट्स मांगते हैं। एक दिन पहले भी वहां जाकर आया हूं।

31 अगस्त 2000 को बैटल एक्सीडेंट में शहीद हो गए थे। इनकी बेटी मुबीना बानो ने अनुकंपा नियुक्ति पर कनिष्ठ लेखाकार की नौकरी के लिए आवेदन किया हुआ है। फाइल अजमेर कलेक्टर के पास पेंडिंग में है। वहीं, इसी गांव के साल 1967 में ऑपरेशन मिजोरम हिल में शहीद हुए कैप्टन अल्लानूर के पोते अकरम काठात ने बताया कि 4 साल से गांव के पंचायत भवन का नामकरण उनके दादा शहीद कैप्टन अल्लानूर के नाम होना पेंडिंग चल रहा है।

11 सितम्बर 1965 के दिन भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे। इनके बेटे ने अनुकंपा नियुक्ति पर कनिष्ठ सहायक की नौकरी के लिए 5 साल पहले आवेदन किया था। फिलहाल इनकी भी नागौर कलेक्टर पीयूष समरिया के पास पेंडिंग है।

शहीदों के परिजनों को राज्य सरकार से मिलने वाली सुविधाएं

  • 31 मार्च 1999 से पहले शहीद होने वाले सैनिकों के परिजनों को तत्कालीन नियमानुसार नकद राशि (1500 से 10 हजार रुपए तक) व 25 बीघा सिंचित कृषि भूमि आवंटन का प्रावधान है।
  • एक अप्रैल 1999 से पहले शहीद हुए सैनिकों की वीरांगनाओं व अविवाहित होने पर माता-पिता को अभी 5 हजार रुपए मासिक सम्मान भत्ता देने का प्रावधान है।
  • 1971 से 31 मार्च 1999 के दौरान शहीद हुए सैनिकों के एक आश्रित को वेतन 10 लेवल तक सरकारी नौकरी का प्रावधान है। 1971 से पहले ये प्रावधान सिर्फ युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों के लिए था।
  • शहीद के सम्मान में एक स्कूल, हॉस्पिटल, पंचायत भवन, रोड या पार्क या फिर किसी पब्लिक प्लेस को शहीद के नाम करने का नियम है।
  • 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के आश्रितों को निशुल्क शिक्षा व स्कॉलरशिप का प्रावधान है। स्कूल लेवल में 1800 रुपए और कॉलेज लेवल पर 3600 रुपए की स्कॉलरशिप का भी नियम है।
  • 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के आश्रितों को आउट ऑफ टर्न बिजली कनेक्शन का नियम बना हुआ है।
  • 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के आश्रितों को रोडवेज बस पास का प्रावधान है।
  • एक अप्रैल 1999 से वीरांगनाओं को एक लाख रुपए नकद और इंदिरा गांधी नहरी परियोजना फेज एक और दो में 25 बीघा सिंचित कृषि भूमि/ MIG हाउसिंग बोर्ड का भवन/ 5 लाख रुपए नकद का प्रावधान है।
  • 2 अप्रैल 2015 से वीरांगनाओं को एक लाख रुपए नकद और इंदिरा गांधी नहरी परियोजना फेज एक और दो में 25 बीघा सिंचित कृषि भूमि/ MIG हाउसिंग बोर्ड का भवन/ 20 लाख रुपए नकद का प्रावधान है।
  • 2 अप्रैल 2018 से वीरांगनाओं को एक लाख रुपए नकद और इंदिरा गांधी नहरी परियोजना फेज एक और दो में 25 बीघा सिंचित कृषि भूमि/ MIG हाउसिंग बोर्ड का भवन/ 25 लाख रुपए नकद का प्रावधान है।
  • 14 फरवरी 2019 से वीरांगनाओं को 25 लाख रुपए नकद और इंदिरा गांधी नहरी परियोजना फेज एक और दो में 25 बीघा सिंचित कृषि भूमि/ MIG हाउसिंग बोर्ड का भवन/ 50 लाख रुपए नकद का प्रावधान है।
  • अल्प बचत योजना के तहत 1 अप्रैल 1999 से शहीदों के माता-पिता के नाम से 5 लाख रुपए की एफडी।

राजस्थान में शहीद सैनिकों के आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति से लंबित प्रकरण

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