Monday, March 27, 2023
spot_img

होली के त्यौहार पर अलग थलग परम्परा:रियासतकाल से करौली के हर घर में पुआ, तिली,खांड से बने हाथी,घोड़े और मिठाइयों से भरी जाती है मिट्‌टी और गोबर से बनी ढाल

  • Hindi News
  • Local
  • Rajasthan
  • Karauli
  • Since The Princely Period, In Every House Of Karauli, Pua, Tili, Elephants Made Of Sugarcane, Horses And Sweets Are Filled With Shields Made Of Clay And Cow Dung.

करौली2 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

करौली। गोबर और मिट्‌टी से बनी ढाल।

मिनी वृंदावन के रुप में प्रसिद्ध राधा मदनमोहन की नगरी करौली में लगभग सभी त्यौहार पर प्रदेश से अलग थलग कई ऐसी परम्पराएं है जो रियासतकाल से ही चली आ रही है और यही परम्परा राजस्थान में करौली को अपनी एक अलग पहचान दिलाती है। करौली के लोग आज आधुनिक युग में भी इन परम्पराओं को निभाते चले आ रहे है। ऐसी ही एक परम्परा करौली में होली के त्यौहार पर निभाई जाती है। होली के त्यौहार पर कुम्हारों द्वारा मिट्‌टी और गोबर से बनी ढाल बनाई जाती है और जो सभी घरों के लोगों द्वारा खरीदी जाती है और फिर होली के दिन परिवार की मंगल कामना और भाई बहनों के स्वस्थ जीवन के लिए पुआ,तिली, खांड से बने हाथी घोड़े और मिठाइयों से ढाल को भरा जाता है। यह परम्परा करौली में रियासतकाल से ही चली आ रही है।
राज्याचार्य पंडित प्रकाश जती ने बताया कि करौली में होली के पर्व पर मिट्टी और गोबर से कटोरानुमा ढाल बनाई जाती है और हर घर में यह भरी जाती है। मिट्टी और गोबर से बनी इस ढाल से यहां कुम्हार परिवारों को रोजगार मिलता है। धार्मिक महत्व के अनुसार यह ढाल परिवार की मंगल कामना, भाई बहनों के स्वस्थ जीवन के लिए करौली के हर घर में पुआ,तिली, खांड से बने हाथी घोड़े और मिठाइयों से भरी जाती है। होली के दिन शुभ मुहूर्त में परिवार के बेटे इन ढालों को परिवार की सुख समृद्धि और वैभव के लिए भरते हैं। जिस प्रकार एक सैनिक की ढाल युद्ध के समय उसकी सुरक्षा करती हैं उसी प्रकार यह मिट्टी और गोबर से बनी ढाल भी परिवार की सुरक्षा करती है। पंडित प्रकाश जती ने बताया कि यह ढाल होली के अवसर पर ही यहां बनती है और देखने को मिलती। यह ढाल करौली में ही बनाई जाती हैं। ढाल भरने की यह परंपरा करौली में सदियों पुरानी है जो रियासत काल से चली आ रही है।
50 से ज्यादा लोगों को मिलता है रोजगार
ढाल व्यापारी अशोक कुमार प्रजापत, महेन्द्र कुमार प्रजापत, राजेश कुमार आदि ने बताया कि ढाल होली के अवसर पर बनाई जाती है। पुरानी परंपरा होने के कारण यहां हर परिवार इसे खरीदता है। इस ढाल को गले हुए कागज, मुल्तानी मिट्टी और गोबर से बनाया जाता है। उसके बाद ढाल के अंदर के भाग को खड़ी की लेप से लेपा जाता हैं और बाहर के भाग को रंगीन कलर से सजाया जाता है। होली के सीजन में इन ढालों की विशेष मांग रहती है। इस ढाल से शहर के करीब 50 से ज्यादा परिवारों को रोजगार उपलब्ध होता है। करौली में 20 रुपए से लेकर 50 रुपए तक की ढाल यहां के बाजारों में होली के अवसर पर बिकती है।

खबरें और भी हैं…

Source link

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments