पाली/जयपुरएक घंटा पहलेलेखक: ओम गौड़
मैं जवाई लेपर्ड कंजर्वेशन रिजर्व क्षेत्र के दूधवाला पहाड़ पर खड़ा हूं। मेरे आस-पास जवाई सिंचाई कमांड इलाके में लेपर्ड दिखाने की शर्त पर कई होटल खड़े हो गए हैं। देसी-विदेशी टूरिस्ट भी यहां सुबह-शाम और रात में लेपर्ड देखने आते हैं।
लेपर्ड कहां दिखेगा, ये होटल वालों को पता होता है। वे उसी पॉइंट पर ले जाते हैं, जहां शर्तियां लेपर्ड होता ही होता है। लेपर्ड की कीमत पर खड़ी हो रही इस होटल इंडस्ट्री के जरिए सफारी को वन विभाग का संरक्षण है। क्योंकि, ये देश का पहला ऐसा क्षेत्र है, जहां सफारी होटलों के नियम और कायदों से होती है। सरकार का इसमें न कोई रोल है और न ही कंट्रोल।
रात के अंधेरे में लेपर्ड दिखाया गया। जैसे ही लेपर्ड बाहर आया सर्च लाइट डाली गई।
इस लेपर्ड रिजर्व को संरक्षण के नजरिए से आठ जोन में बांटा गया था और तय ये हुआ कि आठ हाई पॉवर निगरानी कैमरे लगाए जाएंगे। लेकिन, दो साल में लगे सिर्फ चार। कुछ इलाकों में केबल बिछ चुकी है, लेकिन निगरानी कैमरे इसलिए नहीं लगाए गए कि यहां सबसे ज्यादा अवैध लेपर्ड सफारी का दबदबा है।
राजस्थान में रणथंभौर हो या सरिस्का, मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व हो…गिर के लॉयन सफारी, हर जगह सफारी का नियंत्रण सरकार के हाथों में है। लेकिन, जवाई क्षेत्र में होटलों ने इसे अपने हाथ में ले रखा है और वो भी मनमर्जी के दामों के साथ। इस जंगल और अरावली की पहाड़ियों में सैकड़ों जिप्सियां दौड़ रही हैं।
सुनने में अजीब लगता है, लेकिन सच है, कुछ बड़े होटलों ने पहाड़ भी कब्जे में ले लिया है, जिस पर लेपर्ड का बसेरा है। होटल्स ने पहाड़ के आस-पास की जमीनें लीज पर ले ली और तारबंदी करवा ली।
जब जानकारी मिली कि इसी पहाड़ी पर लेपर्ड है तो वहां सर्च लाइट डाली गई।
देर रात सफारी से यहां बस रहे लेपर्ड का बिहेवियर बदल गया है। उन्हें अब शिकार की जरूरत नहीं, क्योंकि शिकार होटल वाले परोस देते हैं। लेपर्ड आम तौर पर रात को शिकार करते हैं और दिन में सोते हैं। लेकिन, जब से शिकार परोसा जाने लगा है तब से हाेटल मालिकों को पता रहता है कि लेपर्ड किस पहाड़ी की किस गुफा में है और वहीं लगता है टूरिस्ट्स से भरी जिप्सियों का हुजूम।
अगर होटल वालों को लेपर्ड का पता नहीं है तो फिर वे सभी होटलों की टूरिस्टों से भरी जिप्सियां एक ही पॉइंट पर क्यों इकट्ठी हो जाती हैं ? इसका जवाब है- उस पॉइंट पर पहले से लेपर्ड के सामने बकरा फेंक दिया जाता है। तो उन्हें पता रहता है लेपर्ड किसी भी वक्त बाहर आएगा ही।
दिन ढलने के बाद जब देर शाम तक लेपर्ड नहीं आता है तो रोशनी डाली जाती है।
लेपर्ड की आदत रात में शिकार करने की है। इसलिए रात में वो इंसान से सात गुना ज्यादा देखने की क्षमता रखता है। ये देश का पहला लेपर्ड रिजर्व सेंटर था, जहां लेपर्ड और इंसान साथ-साथ रहते थे। जब से लेपर्ड कमाई का जरिया बना है, तब से उसका बिहेवियर बदल गया है। जैसे-जैसे लेपर्ड पलायन करते जा रहे हैं, होटल भी उसी दिशा में बढ़ रहे हैं।
सफारी लाइव: 100 मीटर ऊंचे पहाड़ पर चढ़ा दी जिप्सी, कोडवर्ड से लेपर्ड की लोकेशन
जवाई बांध सिंचाई कमांड एरिया में लेपर्ड सफारी के लिए हम ठीक 4:45 बजे जवाई की एक होटल में पहुंचे। काउंटर पर मिलने वाले शख्स से हमने लेपर्ड सफारी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- शाम 5 बजे सफारी पर निकलिए, हम आज ही आपको पूरी गारंटी के साथ लेपर्ड दिखा देंगे।
शाम 5:15 पर हम जिप्सी में सवार होकर सफारी पर निकल पड़े। टेढ़े-मेढ़े, उबड़–खाबड़ पहाड़ी जंगली रास्तों पर एक नहींं सैकड़ों जिप्सियां दौड़ रही थीं। दूर से हमें एक 100 मीटर ऊंचे पहाड़ पर जिप्सियों की भीड़ नजर आई। ड्राइवर से पूछा– क्या हम भी वहीं जाएंगे। इतने में गियर चेंज किया और उसी पहाड़ पर गाड़ी चढ़ा दी।
यहां पर लेपर्ड नहीं था। लेपर्ड कहां पर है, ये ड्राइवर को पता था। वह अपनी वॉकी-टॉकी से लगातार संपर्क में था और कोडवर्ड में बात कर रहा था कि फाइनल पॉइंट पर कब आना है। इस इलाके में दौड़ रही सारी गाड़ियां वॉकी-टॉकी से लैस हैं।

यहां ऐसे सफारी वाले 70 से ज्यादा हैं। पहाड़ियों पर दौड़तीं जिप्सियां। यहां आने वाले टूरिस्ट को लेपर्ड दिखाने का दावा करती हैं।
लेपर्ड कहां है, कितने बजे आएगा, कहां दिखेगा…ये सारी जानकारी उसके पास थी। एक-दो पॉइंट पर सैर के बाद सूर्यास्त होने लगा तो सेणा-जीवदा और जवाई कमांड में बसी होटलों की 70 से 80 जिप्सियां, एक ही दिशा में चल पड़ीं। टारगेट था दूधवाला पहाड़। पहाड़ सर्च लाइटों से जगमगा उठा। जैसे ही अंधेरा हुआ एक सर्च लाइट की रोशनी से लेपर्ड की दो आंखें चमकती हुई दिखीं, तो आवाज आई जानवर आ गया। वो थी जीवदा-फीमेल लेपर्ड। लेपर्ड ने 3 से 5 मिनट की झलक दिखाई। सर्च लाइटों में नजर आया कि लेपर्ड किसी झाड़ी में छिप गई है।
अब शुरू हुई उसकी खोज, कोई आगे से कोई, कोई पीछे से सर्च लाइट फेंक कर फीमेल लेपर्ड की तलाश की जा रही थी। सर्च लाइट जैसे ही लेपर्ड की आंखों से टकराती है तो यलो कलर रिफ्लेक्ट होता है। उसी की तलाश में लाइटों का दौर चलता रहा, लेकिन वह बाहर नहीं आई। ये वो इलाका है, जहां लेपर्ड और लाइटों के बीच रात के घने अंधेरे में रोज इसी तरह लुका-छिपी का खेल चलता है। यहां लेपर्ड है, अवैध जिप्सियां है, वैध-अवैध होटल हैं, लेकिन, नजर नहीं आया वन विभाग या सरकार विभाग का कोई नुमाइंदा।

लेपर्ड की निगरानी के लिए यहां इस तरह के चार कैमरे लगाए गए हैं। जबकि ऐसे आठ कैमरे स्वीकृत किए गए थे।
चार कैमरे वहां, जहां लेपर्ड नहीं
जवाई लेपर्ड कंजर्वेशन एरिया में लेपर्ड की निगरानी के लिए आठ कैमरे स्वीकृत किए गए थे, लेकिन हैरानी की बात ये है कि इतने साल बाद भी यहां केवल चार कैमरे लगे हैं। इनका डायरेक्शन भी उन्हीं दिशा में हैं, जहां या तो लेपर्ड नहीं या फिर जहां सफारी नहीं होती। यानी जो एरिया फोरेस्ट का है, उन्हीं पहाड़ी पर ये कैमरे निगरानी के लिए लगाए हुए हैं।
लेपर्ड ले आए बड़े होटल
लेपर्ड का इतना एहसान तो है इस जंगली इलाके में 5 स्टार होटल खुल गए। आए दिन फिल्मी स्टार, बड़े सेलिब्रिटी, क्रिकेटर यहां आते रहते हैं तो उन्हें लेपर्ड नजर आना चाहिए, उसके सारे वीवीआईपी इंतजाम किए जाते हैं। लेपर्ड मारवाड़ का प्रतीक चिन्ह है, जिसे शुभंकर कहा जाता है। आज वही प्रतीक चिन्ह भेड़-बकरियों की तरह हांका जा रहा है। फोरेस्ट विभाग का तर्क है, लेपर्ड जंगल में रहे तब तक उनका है, फिर वह किसका है इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
पाली के डीएफओ शरत बाबू से सवाल-जवाब
सवाल: यहां जितने होटल और सफारी हैं, गारंटी देते हैं लेपर्ड दिखाने की। सरिस्का और रणथंभौर में नियम है। यहां विभाग का कोई कंट्रोल नहीं है क्या?
जवाब: सरिस्का, रणथंभौर नेशनल सेंचुरी है। ये फॉरेस्ट एरिया है। हम कोशिश कर रहे हैं। पहले भी मुझे ऐसी सूचना मिली थी। मैंने स्टाफ भेजा था।
सवाल: क्या आपके पास इन्हें रोकने का प्लान है?
जवाब: मैं स्टाफ को बोल देता हूं। आज ही भिजवा देता हूं। सर्विलांस सिस्टम पर है। लेपर्ड का क्या है, वे कहीं भी चले जाएं।
सवाल: मतलब ये आपके अंडर में नहीं?
जवाब: लेपर्ड वन्यजीव है। कुछ पहाड़ियां हमारे पास हैं। हमारे पास लिस्ट भी है कि कौनसी पहाड़ी में कितने लेपर्ड हैं। ये सारी जानकारी हमारे पास है।

जवाई लेपर्ड कंजर्वेशन में सरिस्का और रणथंभौर जैसे नियम लागू होना चाहिए। रात की सफारी को बैन कर देना चाहिए। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। कलेक्टर ने जो 8 जोन बनाने को कहा था उसका अभी तक कोई फॉलोअप नहीं है। इन आठ जोन को जारी कर यहां नियम सख्ती से लागू किए जाए। -लक्ष्मण पारंगी, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट, पाली
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उन्होंने ‘भूखे भजन न होय गोपाला’ की कहावत सुनाते हुए कहा कि मैं सभी को आज यह विश्वास दिलाता हूं कि शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र मेरा विधानसभा क्षेत्र है। यह विधानसभा क्षेत्र पूर्व से पिछड़ा था। साल 1952 से ही यह शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र SC के लिए आरक्षित है। (यहां पढ़ें पूरी खबर)
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