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जफरुल्ला चौधरी ने अपनी मृत्यु से पहले इच्छा जताई थी कि मरने के बाद उनके शव को अध्ययन के लिए मेडिकल के छात्रों के हवाले कर दिया जाए। उनके बेटे वारिस चौधरी ने यह जानकारी दी। नागरिक समाज से जुड़े और राजनीतिक विचारक चौधरी वैस्कुलर सर्जन होने के साथ-साथ एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी थे।
बांग्लादेश के प्रसिद्ध चिकित्सक और मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले डॉक्टर जफरुल्लाह चौधरी को उनकी मृत्यु के तीन दिन बाद शुक्रवार को दफना दिया गया।
चौधरी (81) का मंगलवार को गुर्दे की बीमारी के इलाज के दौरान निधन हो गया था। जफरुल्ला चौधरी ने अपनी मृत्यु से पहले इच्छा जताई थी कि मरने के बाद उनके शव को अध्ययन के लिए मेडिकल के छात्रों के हवाले कर दिया जाए। उनके बेटे वारिस चौधरी ने यह जानकारी दी।
नागरिक समाज से जुड़े और राजनीतिक विचारक चौधरी वैस्कुलर सर्जन होने के साथ-साथ एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी थे।
वारिस ने कहा, “उन्होंने (चौधरी ने) इच्छा जताई थी कि उनके शव को अध्ययन के लिए मेडिकल छात्रों को दान कर दिया जाए, और हम (परिवार) भी उनकी इच्छा को पूरा करना चाहते थे।”
उन्होंने कहा कि परिवार चौधरी के शव को देश के प्रमुख सरकारी ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल और गणोशास्थ्य मेडिकल कॉलेज में दान करना चाहता था, जिसकी स्थापना स्वयं चौधरी ने की थी।
वारिस ने कहा, “लेकिन दोनों संस्थानों ने कहा कि वे शव की चीर-फाड़ करने को तैयार नहीं हैं। . . उन्होंने ऐसा मेरे पिता के प्रति प्यार और सम्मान के कारण कहा था, और इसलिए हमने उन्हें गणोशास्थ्य केंद्र में दफनाने का फैसला किया।”
चौधरी का शव इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार राजधानी के बाहरी इलाके में स्थापित एक गैर-लाभकारी स्वास्थ्य एवं शिक्षा परिसर गणोशास्थ्य केंद्र के परिसर में रखा गया था।
अपने जीवनकाल के दौरान चौधरी के प्रधानमंत्री शेख हसीना और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की प्रमुख खालिदा जिया दोनों से अच्छे संबंध थे।
दोनों नेताओं और बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हामिद ने बयान जारी कर उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
ब्रिटेन में जब चौधरी की मेडिकल की पढ़ाई खत्म होने वाली थी, तब वह मुक्ति संग्राम में शामिल हो गए थे। उन्होंने युद्ध के दौरान भारतीय धरती पर एक प्रमुख अस्पताल स्थापित किया था।
बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद उन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र को बढ़ावा देने में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
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